Friday 9 July 2010

काश जान पाते


वो आदमी जो फूटपाथ पे


रात दिन, धुप छांव, गर्मी सर्दी

अपने हर पल गुज़ार गया

काश जान पाते उसके ख्वाबों में

ज़िन्दगी का अक्श क्या था //

वो शक्स रोज़ झुकी पीठ लिए

बड़ी मुश्किल से रिक्शा चलाता हुवा

कल शाम गिर कर उठ न पाया

काश जान पाते कभी उसके दिल में

सुबह की तस्वीर क्या थी //

वो चेहरा गुमसुम रेस्तरां में

आधी रात ढले काम करता रहा

उम्र भर गालियाँ सुनता रहा

काश जान पाते उसके बचपन के

हसीं लम्हात क्या थे //

एक बूढ़ा माथे पे बोझ लादे हुए

मुक्तलिफ़ रेलों का पता देता रहा

मुद्दतों प्लेटफ़ॉर्म में तनहा ही रहा

काश जान पाते उसकी

मंज़िल का पता क्या था //

शहर के उस बदनाम बस्ती में

पुराने मंदिर के ज़रा पीछे

मुगलिया मस्जिद के बहोत करीब

शिफर उदास वो बूढी निगाहें

तकती हैं गुज़रते राहगीरों को

काश जान पाते उसकी नज़र में

मुहब्बत के मानि क्या थे //

वृद्धाश्रम में अनजान

भूले बिसरे वो तमाम आँखें

झुर्रियों में सिमटी जिंदगी

काश जान पाते, वो उम्मीद की गहराई

जब पहले पहल तुमने चलना सिखा था //

वो मुसाफिरों की भीड़ , कोलाहल

जो बम के फटते ही रेत की मानिंद

बिखर गई खून और हड्डियों में

काश जान पाते के, उनके लहू

का रंग हमसे अलहदा न था //

सिसकियों की ज़बाँ भी होती है

करवट बदलती परछाइयाँ

और सुर्ख भीगी पलकों में कहीं ,

काश हम जान पाते खुद के सिवाय

ज़माने में ज़िन्दगी जीतें हैं और भी लोग //

----शांतनु सान्याल

Thursday 8 July 2010

कुछ पल विशेष

१.फिर महके महुवा वन, दूर छितिज में खोया मन
आदिम झरना,गहन अरण्य,ओ चाहें आत्मसमर्पण //
सजल नेह, प्रतिबिंबित प्रणय, उत्कंठित सांध्य प्रदीप
निशिपुष्प देह झकझोरे,उद्वेलित बाह्य अंतर दर्पण //
२.आग्नेयगिरी सम रह रह कर, हिय में उठे अभिलाष
बन श्रावणी मेघ सघन, बरसो तुम उन्मुक्त आकाश //
अभिशापित जीवन,तृषित ह्रदय, सुप्त हास परिहास
मुक्त करो अप्रत्यासित, मम  स्मृति मोहपाश //
३.प्रतिध्वनित मौन --- मधु यामिनी शेष
आलिंगन बध्द देह --- छिन्न भिन्न अवशेष
परित्यक्त वासना ----- कुछ पल विशेष
शून्य जीवन परिधि --- नग्न सत्य परिवेश
प्रणय विनिमय   -----  मधुरिम दीर्घ क्लेश //
----शांतनु सान्याल

Wednesday 7 July 2010

इक नाम

हथेलियों में लिखा मेंहदी से वो नाम
धीरे धीरे अपने आप इक दिन छूट जायेगा
आँखों में जलन का बहाना
आंसुवों की आग कभी न बुझा पायेगा
ओ कोई मसीहा था यूँ ही
सलीब पे इक दिन कुर्बान हुवा
लुटा के सब कुछ सोचतें हैं लोग
आखिर क्या बात थी, जो मेहरबान हुवा /
----शांतनु सान्याल

Tuesday 6 July 2010

बंजारे बादल

जाने किस ओर मुड़ गए बंजारे बादल
 देख सूखी रिश्तों की बेल, हम परेशां हुए *
जोगी जैसा चेहरा, मरहमी दुवागो हाथ
 आमीन से पहले, जाने  क्यों लहुलुहान हुए   *
बूढ़ा बरगद, सुरमई सांझ और कोलाहल
पलक झपकते, जाने क्यों सब सुनसान हुए  *
खो से गए कहीं दूर, मुस्कराहटों के झुरमुट
आईने का शहर, और भीड़ में हम अनजान हुए *
श्याह, खामोश, बेजान, बंद खिड़की ओ दरवाज़े
संग-ए-दिल, मुस्ससल दस्तक, हम पशेमान  हुए *
ज़िन्दगी भर दोहराया,आयत,श्लोक, पाक किताबें
मासूम की चीख न समझे, हाँ बेईमान हुए *
जाने किस देश में बरसेंगे मोहब्बत के बादल
ये ज़मीं, गुल-ओ-दरख़्त, लेकिन वीरान हुए  *
----शांतनु सान्याल

Monday 5 July 2010

मायावी रात्रि

अपरिभाषित  
सुदूर धूसर पहाड़ियों में, जब कभी दावानल धधक उठतें हैं ,
इक अजीब सी बेचैनी दिल के अन्दर होती है -
ओ फाल्गुनी रातें ,गर्म साँसों की तरह बहती बयारें
मध्य निशा ,रह रह कर चीखते मृग दल
सरसराते पीपल के सघन पत्ते , छाया पखेरू
थम थम कर रजनीगंधा का महकना
दूर तक परछाइयों का लगातार पीछा करना
ज़िन्दगी और मैं अक्सर अकेले में बातें करतें हैं
हिसाब करना बहोत ही मुश्किल है किसने, किसे, क्यों ?
मंज़िल से पहले ही धीरे से , खामोश चलते चलते
यूँ रास्ता बदल लिया अपना , जैसे कोई गुलदान टूट जाए
और हम कहें जाने भी दो ,शीशा ही था टूट गया -
टूटे रिश्ते और पहाड़ों में धधकती आग
बरसात का इंतजार नहीं करते
कौन किस गली में मिल जाये बादलों की तरह
जिसे बरसना है वो वादी और सेहरा में फर्क नहीं करते
हमें भी जीना है चाहे रात लम्बी हो या चंद लम्हात की
हिरण की दर्द भरी चीखें काश हम समझ पाते /
----शांतनु सान्याल

Sunday 4 July 2010

नज़्म نزم


 نزم

नज़्म
इतना न  चाहो मुझे

के भूल जावूँ ये कायनात

अभी तो तमाम उम्र बाकी है

थमी थमी सी साँसें

बहकते जज्बात ज़रा रुको

अभही तो इश्क-ए असर बाकी है

टूट के बिखर न जाये कहीं

हसरतों के नायब मोती

अभी तो जहाँ की नज़र बाकी है

वजूद से कुछ फास्लाह रहे

इक हलकी सी चुभन दरमियाँ हो

अभी तो लम्बी सी रहगुज़र बाकी है

شانتنو سانيال ----शांतनु सान्याल

नज़्म نزم

नज़्म  نزم




जिसे हम नजदीक समझते थे

जाने कब बहोत दूर हुवा

ज़िन्दगी के सीड़ियों में

ओ अचानक मिल भी जाये तो क्या

हमने अपना चेहरा न देखा

मुद्दतों आईने में

इक अजनबी की तरह

करीब से गुज़र जायेंगे

न कोई आवाज़, न अहसास बाकी

पलकों से टूट कर

धीरे से बिखर जायेंगे

شانتنو سانيال -

शांतनु सान्याल

नज़्म زم

नज़्म      زم

इक आग की बारिश
बेकराँ रात की ख़ामोशी
ज़माने  से बेकौफ
इक साथ ज़हर पीने की ख्वाहिश 
न चाँद नज़र आया
न शब् का गुज़ारना याद रहा
उफक पे हंगामा सा बरपा
मुक्तसर रात और तवील ज़िन्दगी
यूँ गुज़री हम अपना अक्श भूल गए
मस्जिद ओ मंदिरों में इश्तेहार 
गुमशुदगी का लगा गया कोई
हर शु थे आशना चेहरे
हम अपना ठिकाना भूल गए
 ايس سانيال --शांतनु सान्याल


































 



ग़ज़ल

ज़रा सी बात थी इशारों से कहा होता
हजूम सा था हद-ए-नज़र  तमाशाई
हम डूब के गुज़रते जानिब-ए-साहिल
राज़-ए-उल्फत किनारों से कहा होता
तमाम रात चांदनी सुलगती रही
इज़हार-ए-वफ़ा आब्सारों से कहा होता
गुमसुम सा आसमाँ तनहा तनहा
तड़प दिल की चाँद तारों से कहा होता
हवाओं में तैरती तहरीर-ए-इश्क
आँखों की बातें बहारों से कहा होता
हम जान लुटाये बैठे हैं
इम्तहान-ए-अज़ल अंगारों से कहा होता /
 --शांतनु सान्याल

कुछ गुमनाम पन्ने---

इक लम्बी, खट्टी मीठी सी ज़िन्दगी
और लुकछुप करता बचपन-
पहाड़ी झरने की मानिंद बिखरते लम्हात
रेत पे लिख लिख कर किसी का नाम,
मुस्कराके मिटा देना --
अपनी ही परछाइयों से सहमते हुए
ज़माने के तमाम पहरे को
मुंह चिड़ाना, ओ खुबसूरत यादें --
शाम ढलते टूटे मंदिर के जानिब
दीप जलाने के बहाने
निगाहों से दिल  की बात कहना
न कोई हसरत, न ही तकाज़ा
मासूम जज्बात, इश्क की बुनियाद
ओ ख्वाब जो कभी हकीक़त में ढल न सके -
ज़िन्दगी इक किताब जिसे पढ़ न सका कोई
पन्ने अपने आप जुढ़ते गए, दिन ब दिन-
मौसम की तरह रिश्तों के रंग, बदलते रहे
चाहत के तलबगार एक लम्बी फेहरिश्त -
हर कोई चाहे ढल जाऊं उसके सांचे में,
काश ओ गुमनाम पन्ने, किसीने पढ़ा होता
इक ग़ज़ल जो लबों पे आकार बिखर गयी वादियों में
आज भी फूल ओ खुशबुओं में उसके अक्श हैं मौजूद
वक़्त मिले कभी तो तलाश कीजिये
कुछ गुमनाम पन्ने--हवाओं में तैरती तहरीरें,
बादलों में पैगाम-ए मुहोब्बत, ओ इज़हार-ए-वफ़ा
जो कांच की तरह नाज़ुक, लेकिन बेदाग़ मुक़द्दस था /
----शांतनु सान्याल

Saturday 3 July 2010

चलो खो जाएँ ---

दिल चाहे आज, खो जाएँ कहीं दूर नीली वादियों में-

तिलिस्मी चाँद, निशाचर पखेरू,अनजान खुशबु-

अरण्य फूलों की,यायावर ख्यालात और तुम हो साथ,

न करो तुम मुझसे कोई सवालात, न मैं ही जवाब दूँ /

किरणों के रास्ते, अरमानों के हमराह, कोई और जहाँ,   चलो खो जाएँ

चलो तलाश करें, उफक से कहा है रोक ले सुबह को,

उम्र भर ये रात रहे बरक़रार, अपनी मुहोब्बत की तरह /
---शांतनु सान्याल
खामोश निगाहों की जुबान
और दिल की गहराइयाँ,
मुस्कानों का दर्द और
हसने की वो मजबूरियां,
किसे छोड़े किसे अपनाएं
नज़दीक हैं सभी परछाईयाँ
अंतहीन रिश्तों की चाहत
और निगलती तन्हाईयाँ,
ओ मुखातिब हैं निगाहों के
और रेत भरी वक़्त की आंधियां /
--- शांतनु सान्याल 

एक लम्बी रात रहस्मयी

धूमिल आकाश, सूर्य अस्तगामी
अलस मरुभूमि,सांझ बोझिल
प्रवासी विह्ग, अन्तरिक्ष विशाल
कुछ अवाक चेहरे, अनजान शहर
अज्ञात  भविष्य, बूँद बूँद स्मृति
देश,माटी,नदी,पहाड़,समुद्र,वर्षा
शरत, चन्द्रमा,और अश्रु घनीभूत
मौसमी पुष्प, सुवासित वातायन
बच्चों की किलकारियां, अतुलनीय
माँ की झिड़क, और आलिंगन
जन अरणय, रेल का गुज़ारना 
उदास आँखों से छुटता अपनापन
विमान का अकस्मात् उड़ना
और एक लम्बी रात रहस्मयी /
---शांतनु सान्याल

वक़्त के पहले

वक़्त के पहले
इक उम्र से तलाश थी जिसकी
निग़ाह दर निग़ाह भटकते रहे
ओ जो मेरे अश्क से था तर ब तर
दिल के किसी कोने में छुपा हुवा
गुम सुम सा डरा डरा
इक ख्याल --कमसिन अहसास
दरवाज़े के इक कोने में
किसी नादान बच्चे की तरह
अक्सर छुप कर लिबास बदलता हुवा
दुनिया की निगाहों से बचता रहा
आज बात कुछ और है
ओ नन्हा सा मासूम कहीं खो सा गया
अब ओ खुद को देखता है
बेलिबास आईने के सामने
और अपनी शख्शियत को सजाता है
दरवाज़े के बाहर बेचने के लिए
ज़माने उसे वक़्त के पहले ही
जवान बना डाला /
--शांतनु सान्याल

ओ नाजुक सा रेशमी अहसास

ओ नाजुक सा रेशमी अहसास
शबनमी बूंदों की तरह
किसी नरगिसी आँखों में ठहरा हुवा /
सीप की मानिंद सीने में छुपाये
किसी की बेंन्ताहन मुहोब्बत
ज़िन्दगी भर की पुरसर चाहत
तब कहीं ये सेहरा इक झील हुवा /
--शांतनु सान्याल

ज़िन्दगी

रहनुमाह थे बहोत, मगर हमसफ़र कोई नहीं
तनहा तनहा चलता रहा,इक नदी के हमराह
कभी इस किनारे कभी उस तरफ रहगुज़र कोई नहीं
इक पुल हुवा करता था, कभी दो साहिलों के दरमियाँ
बेनिशान थे नदी के धारे, हद ए नज़र कोई नहीं
हर सिम्त थी इक अजीब सी ख़ामोशी, तलातुम ठहरा हुवा
मेरा साया दग़ा देता रहा, साथ उम्र भर कोई नहीं /
---शांतनु सान्याल  

raaz

Ek raaz نزم-اك راز

Labon men thahre huye

Jazbaat – iktak dekhte rahe

Ik dhuwan saa uthata raha

Door kisi waadi men--------

Tamaam umr ik intezaar

Raat pighalti rahi

Din karwat badalte rahe

Dil ki gahraiton men

Kisi ki parchhaiyan------

Tairati rahin—dam-b-dam

Girti uthti saanson

Shamil ik ajnabi ne

Zindgi hamari

Ik raaz banaye rakha

Nighahen milaane se bhi

Dar sa lage hai ---

O raaz kahin jaahir na

Ho jaaye— ke ham tumse

Mohabat karte hain.

--- S.SANYAL

ايس-سانيال

rishte---

Gazal غزل‏

Gazal غزل

Kuchh rishton ke unwaan nahi hote--

Nighahon men ik khwab liye baithe ho

Qadim dard itne bhi asaan nahi hote—

O jo mera hamdard, hamraz tha ikdin

Nazdikiyan sar-e-bazm bayan nahi hote

Wadiyon men phool khile mousam se pehle

Har mehkati aarzu lenkin ghulishtan nahi hote

ايس-سانيال-S.SANYAL

UNKNOWN DESTINATION----: NAZM

UNKNOWN DESTINATION----: NAZM: "Nazm نزم Ik aag ki baarish aur Beqran raat ki khamoshi Zamane se bequafh Ik saath zahar pine ki khwaish Na chand nazar aaya Na shab ka..."

NAZM

Nazm نزم

Ik aag ki baarish aur

Beqran raat ki khamoshi

Zamane se bequafh

Ik saath zahar pine ki khwaish

Na chand nazar aaya

Na shab ka guzarna yaad raha

Ufhaq pe kohram saa barpa

Muqtsar raat men taweel zindgi

Yun guzri ham apna aqsh bhul gaye

Masjid o mandiron men ishtehar

Gumshudgi ka laga gaya koi

Har shu they ashna chehre

Ham apna thikana bhul gaye

n s.sanyal

n ايس سانيال