Wednesday 7 July 2010

इक नाम

हथेलियों में लिखा मेंहदी से वो नाम
धीरे धीरे अपने आप इक दिन छूट जायेगा
आँखों में जलन का बहाना
आंसुवों की आग कभी न बुझा पायेगा
ओ कोई मसीहा था यूँ ही
सलीब पे इक दिन कुर्बान हुवा
लुटा के सब कुछ सोचतें हैं लोग
आखिर क्या बात थी, जो मेहरबान हुवा /
----शांतनु सान्याल

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