Tuesday 6 July 2010

बंजारे बादल

जाने किस ओर मुड़ गए बंजारे बादल
 देख सूखी रिश्तों की बेल, हम परेशां हुए *
जोगी जैसा चेहरा, मरहमी दुवागो हाथ
 आमीन से पहले, जाने  क्यों लहुलुहान हुए   *
बूढ़ा बरगद, सुरमई सांझ और कोलाहल
पलक झपकते, जाने क्यों सब सुनसान हुए  *
खो से गए कहीं दूर, मुस्कराहटों के झुरमुट
आईने का शहर, और भीड़ में हम अनजान हुए *
श्याह, खामोश, बेजान, बंद खिड़की ओ दरवाज़े
संग-ए-दिल, मुस्ससल दस्तक, हम पशेमान  हुए *
ज़िन्दगी भर दोहराया,आयत,श्लोक, पाक किताबें
मासूम की चीख न समझे, हाँ बेईमान हुए *
जाने किस देश में बरसेंगे मोहब्बत के बादल
ये ज़मीं, गुल-ओ-दरख़्त, लेकिन वीरान हुए  *
----शांतनु सान्याल

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