Saturday 3 July 2010

वक़्त के पहले

वक़्त के पहले
इक उम्र से तलाश थी जिसकी
निग़ाह दर निग़ाह भटकते रहे
ओ जो मेरे अश्क से था तर ब तर
दिल के किसी कोने में छुपा हुवा
गुम सुम सा डरा डरा
इक ख्याल --कमसिन अहसास
दरवाज़े के इक कोने में
किसी नादान बच्चे की तरह
अक्सर छुप कर लिबास बदलता हुवा
दुनिया की निगाहों से बचता रहा
आज बात कुछ और है
ओ नन्हा सा मासूम कहीं खो सा गया
अब ओ खुद को देखता है
बेलिबास आईने के सामने
और अपनी शख्शियत को सजाता है
दरवाज़े के बाहर बेचने के लिए
ज़माने उसे वक़्त के पहले ही
जवान बना डाला /
--शांतनु सान्याल

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