१.फिर महके महुवा वन, दूर छितिज में खोया मन
आदिम झरना,गहन अरण्य,ओ चाहें आत्मसमर्पण //
सजल नेह, प्रतिबिंबित प्रणय, उत्कंठित सांध्य प्रदीप
निशिपुष्प देह झकझोरे,उद्वेलित बाह्य अंतर दर्पण //
२.आग्नेयगिरी सम रह रह कर, हिय में उठे अभिलाष
बन श्रावणी मेघ सघन, बरसो तुम उन्मुक्त आकाश //
अभिशापित जीवन,तृषित ह्रदय, सुप्त हास परिहास
मुक्त करो अप्रत्यासित, मम स्मृति मोहपाश //
३.प्रतिध्वनित मौन --- मधु यामिनी शेष
आलिंगन बध्द देह --- छिन्न भिन्न अवशेष
परित्यक्त वासना ----- कुछ पल विशेष
शून्य जीवन परिधि --- नग्न सत्य परिवेश
प्रणय विनिमय ----- मधुरिम दीर्घ क्लेश //
----शांतनु सान्याल
No comments:
Post a Comment