Sunday 4 July 2010

नज़्म نزم


 نزم

नज़्म
इतना न  चाहो मुझे

के भूल जावूँ ये कायनात

अभी तो तमाम उम्र बाकी है

थमी थमी सी साँसें

बहकते जज्बात ज़रा रुको

अभही तो इश्क-ए असर बाकी है

टूट के बिखर न जाये कहीं

हसरतों के नायब मोती

अभी तो जहाँ की नज़र बाकी है

वजूद से कुछ फास्लाह रहे

इक हलकी सी चुभन दरमियाँ हो

अभी तो लम्बी सी रहगुज़र बाकी है

شانتنو سانيال ----शांतनु सान्याल

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