Sunday 4 July 2010

नज़्म نزم

नज़्म  نزم




जिसे हम नजदीक समझते थे

जाने कब बहोत दूर हुवा

ज़िन्दगी के सीड़ियों में

ओ अचानक मिल भी जाये तो क्या

हमने अपना चेहरा न देखा

मुद्दतों आईने में

इक अजनबी की तरह

करीब से गुज़र जायेंगे

न कोई आवाज़, न अहसास बाकी

पलकों से टूट कर

धीरे से बिखर जायेंगे

شانتنو سانيال -

शांतनु सान्याल

No comments:

Post a Comment