नज़्म نزم
जिसे हम नजदीक समझते थे
जाने कब बहोत दूर हुवा
ज़िन्दगी के सीड़ियों में
ओ अचानक मिल भी जाये तो क्या
हमने अपना चेहरा न देखा
मुद्दतों आईने में
इक अजनबी की तरह
करीब से गुज़र जायेंगे
न कोई आवाज़, न अहसास बाकी
पलकों से टूट कर
धीरे से बिखर जायेंगे
شانتنو سانيال -
शांतनु सान्याल
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